Friday, August 6, 2010

सहनशील है जनता

करते ही रहो जुल्म सहनशील है जनता
आप के कपड़े में लगी नील है जनता

महंगाई बढ़ा करके हमें क्या दिया तोफा
टूटी हमारी खाट भी खुद ले लिया सोफा
कामन न रहा वेल्थ हेल्थ खेल का बिगड़ा
जिसमें है फंसा देश वो है कर्ज का पिजड़ा
इसको न जड़ बनाओ ये गतिशील है जनता
करते ही रहो जुल्म सहनशील है जनता

फीका हुआ है आज अपनी चाय का प्याला
तुम छीनने लगे हो अब हर मुख का निवाला
तुम तो मनाओ दिवाली, अपना है दिवाला
सब कुछ तुम्हारी कैद में मस्जिद या शिवाला
इसको न सिखाओ, ये प्रगतिशील है जनता
करते ही रहो जुल्म सहनशील है जनता

सबूत खरीदो भले ताबूत बेच दो
इस देश को आधा या तुम साबूत बेच दो
ईमान बेच दो भले सम्मान बेच दो
आदमी तो क्या तुम भगवान बेच दो
पर आपके ताबूत की भी कील है जनता
करते ही रहो जुल्म सहनशील है जनता

हैं दागदार कर्म पर बेदाग बने हो
रोटी के हर टुकड़े के लिए काग बने हो
इस देश के संगीत का तुम राग बने हो
आस्तीन के तुम जाने कब से नाग बने हो
भूलो नहीं कि बहुत ज्वलनशील है जनता
करते ही रहो जुल्म सहनशील है जनता

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