Thursday, September 30, 2010

धूप और छांव

तुम्ही धूप हो तुम्ही छांव हो, जहां बसे घर वही गांव हो।
हमको प्यारा नेह तुम्हारा, तुम्ही हो नदिया तुम्ही किनारा।
पार मुझे ले जाने वाले, तुम्ही तो केवट तुम्ही नाव हो।
तुम्ही धूप हो तुम्ही छांव हो---------

तुम्ही मुझे दुनिया में लाए, मन में आशा-दीप जलाए।
आशा और निराशा तम में, तुम्ही प्रेरणा ज्योति जगाए।
जब जीवन में जगह न मिलती, ऐसे पल में तुम्ही ठांव हो।
तुम्ही धूप हो तुम्ही छांव हो---------

भटक रहा था इस दुनिया में, अपने मन में तुझे न खोजा।
इसीलिए तो भेदभाव का, चिन्तन आया उसी को सोचा।
पड़ता जो सम्पूर्ण जगत पर, हे प्रभु जी तुम ही प्रभाव हो।
तुम्ही धूप हो तुम्ही छांव हो---------

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