Monday, January 25, 2010

स्वर एक


हे वीणावादिनि नित नवीन, अपना स्वर एक सुना देना।
वाणी हो अपनी देवि कहो, वंदना करूं कैसे तेरी।
सब नए छंद तेरा स्वरूप, तुझसे निकली कविता मेरी।
लेखनी करेगी अभिनन्दन, अपना सन्देश सुना देना।
हे वीणावादिनि---------------------------------
हे देवि तुम्हीं हो ज्ञानरूप, हे देवि तुम्हीं हो भक्तिरूप।
हर रूप तुम्हारा ही स्वरूप, हे देवि तुम्हीं हो शक्तिरूप।
जीवनीशक्ति मिलती जिससे, संगीत वही फैला देना।
हे वीणा वादिनि---------------------------------------
सम्पूर्ण सृजन हो सृष्टि तुम्ही, तुम ज्ञान राशि का अर्जन हो।
हो ज्ञान चक्षु की दृष्टि तुम्ही, तुम ही तो सम्यक दर्शन हो।

हे मुक्ति दायिनी तम पथ पर, अपनी नवज्योति जगा देना।
हे वीणा वादिनि -------------------------

जीवों में ज्ञान तुम्हारा है, मन में भगवान् तुम्हारा है।
जो तुम्हें समर्पित होता है, वह भी इंसान तुम्हारा है।
मैं करूं समर्पित क्या तुझको, सेवा में मुझे बुला लेना।
हे वीणा वादिनि ------------------------------

भूमिका


जारी---

चेतना शक्ति


जारी---

लक्ष्य-1


जारी---

लक्ष्य-2


जारी----

लक्ष्य-3


तरुण चेतना