Tuesday, August 31, 2010

तदपि कहे बिनु रहा न कोई

भगवान के बारे में शास्त्रों में विस्तार से बताया गया है। यह भी कहा गया है कि उनके बारे में सम्पूर्णता से कुछ भी नहीं कहा जा सकता। तभी तो समस्त शास्त्र, वेद और पुराण नेति-नेति कह कर भगवान की ओर संकेत भर करते हैं। नेति का मतलब ऐसा नहीं। फिर कैसा......बस यहीं पर मुशिकल आती है। तो फिर किया क्या जाए। क्या निराश हो जाएं कि जब भगवान के बारे में कुछ कहा ही नहीं जा सकता, तो क्यों दिमाग खपाएं, लेकिन शास्त्र कहते हैं कि जिससे जितना बन पड़े, भगवान के बारे में चिन्तन जरूर करे। यही चिन्तन भजन बन जाता है, जिसका बहुत बड़ा प्रभाव है। इसका प्रमाण श्रीरामचरित मानस के बालकाण्ड की एक चौपाई में मिलता है।
सब जानत प्रभु प्रभुता सोई। तदपि कहे बिनु रहा न कोई।।
तहां वेद अस कारन राखा। भजन प्रभाउ भांति बहु भाषा ।।
अर्थात-यद्यपि प्रभु श्रीरामचन्द्रजीकी प्रभुता को सब अकथनीय ही जानते हैं तथापि कहे बिना कोई नहीं रहा। इसमें वेद ने ऐसा कारण बताया है कि भजन का प्रभाव बहुत तरह से कहा गया है। भगवान के गुणगानरूपी भजनका प्रभाव बहुत ही अनोखा है, उसका नाना प्रकार से शास्त्रों में वर्णन है। थोड़ा सा भी भगवान का भजन सहज ही भवसागर से तार देता है।
वास्तव में चार स्थितियां भजन की ओर ले जाती हैं। एक धन-दौलत की इच्छा, दूसरी संकट से छुटकारे की चाह, तीसरी जिज्ञासा शांत करने की चाह और चौथी ज्ञान पाने की इच्छा। किसी भी स्थिति में भजन लाभकारी होता है। इसी प्रकार भजन पर चर्चा जारी रहेगी। कुछ आप कहें और कुछ हम। भजन से आपको कितना लाभ हो सकता है, इसके भी बहुत प्रमाण हैं, लेकिन सबसे बड़ा प्रमाण है-भजन आओ करके देखें। बस आज इतना ही।
-श्रीकान्त सिंह

Friday, August 6, 2010

सहनशील है जनता

करते ही रहो जुल्म सहनशील है जनता
आप के कपड़े में लगी नील है जनता

महंगाई बढ़ा करके हमें क्या दिया तोफा
टूटी हमारी खाट भी खुद ले लिया सोफा
कामन न रहा वेल्थ हेल्थ खेल का बिगड़ा
जिसमें है फंसा देश वो है कर्ज का पिजड़ा
इसको न जड़ बनाओ ये गतिशील है जनता
करते ही रहो जुल्म सहनशील है जनता

फीका हुआ है आज अपनी चाय का प्याला
तुम छीनने लगे हो अब हर मुख का निवाला
तुम तो मनाओ दिवाली, अपना है दिवाला
सब कुछ तुम्हारी कैद में मस्जिद या शिवाला
इसको न सिखाओ, ये प्रगतिशील है जनता
करते ही रहो जुल्म सहनशील है जनता

सबूत खरीदो भले ताबूत बेच दो
इस देश को आधा या तुम साबूत बेच दो
ईमान बेच दो भले सम्मान बेच दो
आदमी तो क्या तुम भगवान बेच दो
पर आपके ताबूत की भी कील है जनता
करते ही रहो जुल्म सहनशील है जनता

हैं दागदार कर्म पर बेदाग बने हो
रोटी के हर टुकड़े के लिए काग बने हो
इस देश के संगीत का तुम राग बने हो
आस्तीन के तुम जाने कब से नाग बने हो
भूलो नहीं कि बहुत ज्वलनशील है जनता
करते ही रहो जुल्म सहनशील है जनता