Thursday, September 30, 2010

वैकुंठ करेगा अभिनन्दन

चतुराई की दौड़-धूप में, भी भोले तुम बन जाओ।
विचलित गर्मी कर न सके, अब आग के शोले बन जाओ।

शीतलता की आस छोड़कर, सिर्फ दहकने की सोचो।
अस्तित्व नहीं मुरझाने में, इसलिए महकना ही सीखो।

संघर्ष तुम्हारा कांटों से, मुख उनका सहज तोड़ देना।
जिस ओर तुम्हारी मंजिल है, जीवन प्रवाह मोड़ देना।

धैर्ययुक्त हो करो सामना, कठिनाई हो भले महान।
कभी नहीं खोना है तुझको वीर-पुत्र अपनी मुस्कान।

परेशानियां आज उठ रहीं, सिर के भी ऊपर सोचो।
चिन्तन से भर लो उछाल, चिन्ता की बात नहीं सोचो।

दुर्भाग्य सांप तुझसे लिपटे, तुम सुन्दर वृक्ष बनो चन्दन।
कुंठा को छोड़ बढ़ो आगे, वैकुंठ करेगा अभिनन्दन।


जहां की संस्कृति अमिट अपार

उछलती धवल गंग की धार, बनाती हों यमुना गम्भीर।
सुन रहे हों नित नवल पुकार, भारती का भारत के धीर।

जहां पावन नदियों का मेल, पुण्य बरसाता संगम तीर।
पाप हरने का होता खेल, मिले पावन गंगा का नीर।

घाघरा, गंगा, यमुना आदि, जहां नदियों का मिले दुलार।
वही है अपना भारत देश, जहां की संस्कृति अमिट अपार।

मनुजता का देती सन्देश, सिखाती सबसे करना प्यार।
जहां पर आते हैं भगवान, सभी का करते हैं उद्धार।

समस्याओं को पीछे छोड़, लक्ष्य सामने रखो हे वीर।
कर्मयुत जीवन में तज आस, धन्य कर दो यह अधम शरीर।



चेतना शक्ति

भूतल पर क्यों भार बने हो, शक्ति-पुत्र निर्बल होकर।
सुप्त पड़ी है क्यों चेतनता, तन मन से दुर्बल होकर।

दीन बने हो क्यों सोचो, संघर्षयुक्त जीवन खोकर।
मन मलीन है क्यों सोचो, कब तक जागोगे सोकर।

दीप-ज्योति क्यों बुझी हुई है, तम-रिपु से लोहा लेकर।
अर्जित किया हुआ है क्या, जो जाओगे युग को देकर।

जब युवा अवस्था स्वीकारा, अपना अमूल्य बचपन देकर।
तो खुश रहकर जीना सीखो, अपना नश्वर जीवन देकर।

जनमानस तुझे पुकारेगा, नित नई अपेक्षाएं लेकर।
जीवन को जीना है कब तक, मन में ही इच्छाएं लेकर।

क्रियाशीलता की गति को, कब इच्छाशक्ति पुकारेगी।
चेतनाशक्ति जीवन उपवन को, आकर सहज संवारेगी।

बापू की संघर्ष यात्रा

संघर्ष यात्रा में मरना, जिसने स्वीकार किया था।
सत्य अहिंसा युक्त हृदय, दुनिया से प्यार किया था।
वह गांधी नाम हृदय में सबके, तब तक अमर रहेगा।
जब तक पृथ्वी के आंचल में जीवन सफर चलेगा।

अस्त्र विहीन साहसी सैनिक सेना को ललकारे।
विजयश्री ले लिए सहज ही भारत मां के प्यारे।
आजादी का वृक्ष उन्होंने अपने खून से सींचा।
यही हमें दायित्व दे दिए, कभी न हो सिर नीचा।

जीवन मुक्त हुए पर हममें, वे निवास करते हैं।
इसीलिए भीगी आंखों से सभी याद करते हैं।


जीवन के नाटक का मंचन

हे दीप तुम्हारा अभिनन्दन, हे ज्योति तुम्हारा अभिनन्दन।
जीवन जन-जन का दीप तुम्ही, हर गति का कारण ज्योति तुम्ही।
कर जोर सभी करते रहते, हे दीप-ज्योति तेरा वन्दन।
हे दीप तुम्हारा अभिनन्दन--------

जीवन का दीपक जलता है, व्यक्तित्व प्रकाश निकलता है।
ज्लाला बिखेरती तेज पुंज, अधबुझे दीप करते क्रन्दन।
हे दीप तुम्हारा अभिनन्दन--------

दीपक दुनिया में आते हैं, इतिहास छोड़कर जाते हैं।
दीपक की ज्योति तुम्हारा तो, युग-युग होता रहता चिन्तन।
हे दीप तुम्हारा अभिनन्दन--------

यह सृष्टि तुम्ही हर दृष्टि तुम्ही, यह जीवन मंच तुम्हारा है।
तेरे प्रकाश में होता है, जीवन के नाटक का मंचन।
हे दीप तुम्हारा अभिनन्दन--------


धूप और छांव

तुम्ही धूप हो तुम्ही छांव हो, जहां बसे घर वही गांव हो।
हमको प्यारा नेह तुम्हारा, तुम्ही हो नदिया तुम्ही किनारा।
पार मुझे ले जाने वाले, तुम्ही तो केवट तुम्ही नाव हो।
तुम्ही धूप हो तुम्ही छांव हो---------

तुम्ही मुझे दुनिया में लाए, मन में आशा-दीप जलाए।
आशा और निराशा तम में, तुम्ही प्रेरणा ज्योति जगाए।
जब जीवन में जगह न मिलती, ऐसे पल में तुम्ही ठांव हो।
तुम्ही धूप हो तुम्ही छांव हो---------

भटक रहा था इस दुनिया में, अपने मन में तुझे न खोजा।
इसीलिए तो भेदभाव का, चिन्तन आया उसी को सोचा।
पड़ता जो सम्पूर्ण जगत पर, हे प्रभु जी तुम ही प्रभाव हो।
तुम्ही धूप हो तुम्ही छांव हो---------