Thursday, September 30, 2010

वैकुंठ करेगा अभिनन्दन

चतुराई की दौड़-धूप में, भी भोले तुम बन जाओ।
विचलित गर्मी कर न सके, अब आग के शोले बन जाओ।

शीतलता की आस छोड़कर, सिर्फ दहकने की सोचो।
अस्तित्व नहीं मुरझाने में, इसलिए महकना ही सीखो।

संघर्ष तुम्हारा कांटों से, मुख उनका सहज तोड़ देना।
जिस ओर तुम्हारी मंजिल है, जीवन प्रवाह मोड़ देना।

धैर्ययुक्त हो करो सामना, कठिनाई हो भले महान।
कभी नहीं खोना है तुझको वीर-पुत्र अपनी मुस्कान।

परेशानियां आज उठ रहीं, सिर के भी ऊपर सोचो।
चिन्तन से भर लो उछाल, चिन्ता की बात नहीं सोचो।

दुर्भाग्य सांप तुझसे लिपटे, तुम सुन्दर वृक्ष बनो चन्दन।
कुंठा को छोड़ बढ़ो आगे, वैकुंठ करेगा अभिनन्दन।


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