हे दीप तुम्हारा अभिनन्दन, हे ज्योति तुम्हारा अभिनन्दन।
जीवन जन-जन का दीप तुम्ही, हर गति का कारण ज्योति तुम्ही।
कर जोर सभी करते रहते, हे दीप-ज्योति तेरा वन्दन।
हे दीप तुम्हारा अभिनन्दन--------
जीवन का दीपक जलता है, व्यक्तित्व प्रकाश निकलता है।
ज्लाला बिखेरती तेज पुंज, अधबुझे दीप करते क्रन्दन।
हे दीप तुम्हारा अभिनन्दन--------
दीपक दुनिया में आते हैं, इतिहास छोड़कर जाते हैं।
दीपक की ज्योति तुम्हारा तो, युग-युग होता रहता चिन्तन।
हे दीप तुम्हारा अभिनन्दन--------
यह सृष्टि तुम्ही हर दृष्टि तुम्ही, यह जीवन मंच तुम्हारा है।
तेरे प्रकाश में होता है, जीवन के नाटक का मंचन।
हे दीप तुम्हारा अभिनन्दन--------
No comments:
Post a Comment