Thursday, September 30, 2010

जीवन के नाटक का मंचन

हे दीप तुम्हारा अभिनन्दन, हे ज्योति तुम्हारा अभिनन्दन।
जीवन जन-जन का दीप तुम्ही, हर गति का कारण ज्योति तुम्ही।
कर जोर सभी करते रहते, हे दीप-ज्योति तेरा वन्दन।
हे दीप तुम्हारा अभिनन्दन--------

जीवन का दीपक जलता है, व्यक्तित्व प्रकाश निकलता है।
ज्लाला बिखेरती तेज पुंज, अधबुझे दीप करते क्रन्दन।
हे दीप तुम्हारा अभिनन्दन--------

दीपक दुनिया में आते हैं, इतिहास छोड़कर जाते हैं।
दीपक की ज्योति तुम्हारा तो, युग-युग होता रहता चिन्तन।
हे दीप तुम्हारा अभिनन्दन--------

यह सृष्टि तुम्ही हर दृष्टि तुम्ही, यह जीवन मंच तुम्हारा है।
तेरे प्रकाश में होता है, जीवन के नाटक का मंचन।
हे दीप तुम्हारा अभिनन्दन--------


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