Tuesday, October 12, 2010

तुम्ह समान नहि कोऊ


तुम्ह समान नहि कोऊ, मां दुर्गे तुम्ह समान नहिं कोऊ.....

ज्ञानिन्ह कर चि खींचत बल से
सींचत हो मन मोह के ब
से
सुमिरन करत हरहु भय सारा
चिन्तन करत करहु उपकारा

हर लेती दारिद, भय दोउ, तुम्ह समान नहि कोऊ.....

नारायणि मंगलमय रानी
सब मंगल तुम्ह करहु भवानी
सिद्ध करहु तुम्ह सब
पुरुषारथ
शरणागत वत्सल परमारथ

नहि सहाय तुम्ह बिनु अब कोउ, तुम्ह समान नहि कोऊ.....

शरणागत, पीड़ित की रक्षा
सबहि भान्ति तुम्ह करहु सुरक्षा
हरती पीड़ा त्रिनेत्र गौरी
सुनि पुकार आवहु तुम्ह दौरी

तुम्हहि प्रणाम करत सब कोऊ, तुम्ह समान नहि कोऊ....

सर्वेश्वरि मां सर्वस्वरूपा
दुर्गे देवि मां दिव्य स्वरूपा
रक्षा कर हे शक्ति स्वरूपा
दे दो मां निज भक्ति अनूपा

पुरुष, प्रकृति तुम्ह दोऊ, तुम्ह समान नहि कोऊ......

हो प्रसन्न सब रोग नसाए
कुपित भए सब काम नसाए
तुम्हरी शरण शरणदाता भए
सब बाधा हर शत्रु नसाए

आवत नहि विपत्ति तब कोऊ, तुम्ह समान नहि कोऊ.....

No comments: