Thursday, February 18, 2010

शाश्वत प्रकाश

किससे मिलन चाहता है मन, किसके लिए तरसता है मन।
किसके लिए सोचता है वह, जिसके बिना अधूरा जीवन।

किस पर वह प्यार लुटाता है, किस पर खुद भी लुट जाता है।
इस लुटने का आनन्द लिए, सपनों में किसे बुलाता है।

जीवन भी कैसा सपना है, कैसे कह दूं कि अपना है।
जो सबसे दुर्लभ दिखता है, हम उसके हैं वह अपना है।

साक्षात्कार कर लेने को, अपने मन का दृग उत्सुक है।
नयनों की प्यास बुझाने को शाश्वत प्रकाश भी इच्छुक है।

1 comment:

Yogesh Verma Swapn said...

blog jagat men swagat hai.

किस पर वह प्यार लुटाता है, किस पर खुद भी लुट जाता है।
इस लुटने का आनन्द लिए, सपनों में किसे बुलाता है।

achchi rachna ke liye badhaai.